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मुखड़ा वो बुत जिधर करेगा | शाही शायरी
mukhDa wo but jidhar karega

ग़ज़ल

मुखड़ा वो बुत जिधर करेगा

ग़मगीन देहलवी

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मुखड़ा वो बुत जिधर करेगा
बंदा सज्दा उधर करेगा

करना हो जिसे कि ख़ाना वीराँ
दिल में तिरे वो घर करेगा

वो लुत्फ़ उठाएगा सफ़र का
आप-अपने में जो सफ़र करेगा

वाइज़ ये सुख़न तिरा कभी आह
हम में भी कुछ असर करेगा

ऐ शैख़ तुझे बुतों से इंकार
वल्लाह बहुत ज़रर करेगा

हो जिस को तमाम शब सर-ए-शाम
क्या वस्ल में वो सहर करेगा

'ग़मगीं' जो बैठे उस के दर पर
वो उस को न दर-ब-दर करेगा