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मुख़ालिफ़ों के जिलौ में वो आज शामिल था | शाही शायरी
muKhaalifon ke jilau mein wo aaj shamil tha

ग़ज़ल

मुख़ालिफ़ों के जिलौ में वो आज शामिल था

अरशदुल क़ादरी

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मुख़ालिफ़ों के जिलौ में वो आज शामिल था
वफ़ा-परस्त रुतों का जो शख़्स हासिल था

वो मेरी ज़ात की पहचान भी तआरुफ़ भी
मिरे लहू में ब-रंग-ए-हयात शामिल था

हसीन रात थी हाथों में हाथ थे हम थे
कनार-ए-आब ख़मोशी थी माह-ए-कामिल था

तग़य्युरात-ए-ज़माना भी क्या अजब शय हैं
जो जाँ-निसार था पहले वो आज क़ातिल था

मुझे भी फ़क़्र की दौलत पे फ़ख़्र था यारो
उसे भी लाल-ओ-गुहर का ग़ुरूर हासिल था

बहुत ही सादा तबीअ'त था उन दिनों 'अरशद'
कि जब वो मेहर-ओ-ख़ुलूस-ओ-वफ़ा का क़ाइल था