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मुझे सँभाल मिरा हाथ थाम कर ले जा | शाही शायरी
mujhe sambhaal mera hath tham kar le ja

ग़ज़ल

मुझे सँभाल मिरा हाथ थाम कर ले जा

निसार नासिक

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मुझे सँभाल मिरा हाथ थाम कर ले जा
थका हुआ हूँ कई दिन का मुझ को घर ले जा

गिरफ़्त-ए-गुल से निकल कर बिखरता जाता हूँ
मुझे हवा के परों में समेट कर ले जा

जहाँ से माँग मिरे नाम पर हयात की भीक
तू मेरा कासा-ए-एहसास दर-ब-दर ले जा

जहान-ए-पस्त को फिर देखने की ख़्वाहिश है
शुऊर-ए-ग़म मुझे ग़म के पहाड़ पर ले जा

अब उस से आगे हर इक मोड़ पर अँधेरा है
तू अपने साथ मिरे प्यार की सहर ले जा

तू जिस की राह में रोया है उम्र भर 'नासिक'
वो सुब्ह राख हुई अपनी झोली भर ले जा