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मुझे लिक्खो वहाँ क्या हो रहा है | शाही शायरी
mujhe likkho wahan kya ho raha hai

ग़ज़ल

मुझे लिक्खो वहाँ क्या हो रहा है

अकबर हमीदी

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मुझे लिक्खो वहाँ क्या हो रहा है
यहाँ तो फिर तमाशा हो रहा है

हवा के दोश पर है आशियाना
परिंदा तिनका तिनका हो रहा है

अभी परवाज़ की फ़ुर्सत है किस को
अभी तो दाना-दुन्का हो रहा है

कोई नादीदा उँगली उठ रही है
मिरी जानिब इशारा हो रहा है

वो अपने हाथ सीधे कर रहे हैं
हमारा शहर उल्टा हो रहा है

न जाने किस तरफ़ से लिक्खा जाए
चमन दीवार-ए-फ़र्दा हो रहा है