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मुझे लगते हैं प्यारे तितलियाँ जुगनू परिंदे | शाही शायरी
mujhe lagte hain pyare titliyan jugnu parinde

ग़ज़ल

मुझे लगते हैं प्यारे तितलियाँ जुगनू परिंदे

ज़फ़र ख़ान नियाज़ी

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मुझे लगते हैं प्यारे तितलियाँ जुगनू परिंदे
ये ज़िंदा इस्तिआरे तितलियाँ जुगनू परिंदे

यहीं मिलती हैं धरती की हदें बाग़-ए-इरम से
वो देखो अब्र-पारे तितलियाँ जुगनू परिंदे

बस इक तुम ही नहीं मंज़र में वर्ना क्या नहीं है
सुराही चाँद तारे तितलियाँ जुगनू परिंदे

अभी ये कौन आया सेहन-ए-गुल में धीरे धीरे
अड़े ख़ुशबू के धारे तितलियाँ जुगनू परिंदे

यहाँ ख़तरे में है ख़ुद आदमी की ज़ात अपनी
जिएँ किस के सहारे तितलियाँ जुगनू परिंदे

किताब-ए-ज़िंदगी की ये मुक़द्दस आयतें हैं
हिरन चीतल चिकारे तितलियाँ जुगनू परिंदे

'ज़फ़र' ये कौन हम से छीन कर बचपन हमारा
उड़ाता है ग़ुबारे तितलियाँ जुगनू परिंदे