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मुझे भी या-रब फ़राग़त-ए-माह-ओ-साल देना | शाही शायरी
mujhe bhi ya-rab faraghat-e-mah-o-sal dena

ग़ज़ल

मुझे भी या-रब फ़राग़त-ए-माह-ओ-साल देना

नोमान इमाम

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मुझे भी या-रब फ़राग़त-ए-माह-ओ-साल देना
कभी मिरे दिल के हौसले भी निकाल देना

ये ग़म की लम्बी अँधेरी शब किस तरह कटेगी
उफ़ुक़ पे दिल के कोई किरन तो उछाल देना

जो रोज़ ओ शब के नसीब में बे-दरी है लिखनी
न ख़्वाब देना न दिल में शौक़ विसाल देना

कभी अगर तुम हवाओ दश्त ओ जबल से गुज़रो
तो उन की महरूमियों को मेरी मिसाल देना

ये ज़िंदगी क्या मिरे अज़ाएम का साथ देगी
मुझे कुछ इस से भी बढ़ के कार-ए-मुहाल देना

वो दिल की चाहत ख़ुलूस की बैअतें कहाँ हैं
नई कहानी से सब ये बातें निकाल देना