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मुझे भी नीम के जैसा न कर दे | शाही शायरी
mujhe bhi nim ke jaisa na kar de

ग़ज़ल

मुझे भी नीम के जैसा न कर दे

तनवीर गौहर

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मुझे भी नीम के जैसा न कर दे
कि तल्ख़ी ज़ीस्त की कड़वा न कर दे

ये तेरी आरज़ू ऐसा न कर दे
ज़माने में मुझे रुस्वा न कर दे

मोहब्बत ज़िंदगी से वो भी बेहद
कहीं ये ज़िंदगी धोका न कर दे

तू इस से क़ब्ल हो आँखों से ओझल
मिरा मालिक मुझे अंधा न कर दे

अता कर दे इलाही फिर से बचपन
मुझे हर फ़िक्र से बेगाना कर दे

सजा दे दिन में तारे शब में सूरज
अगर वो चाहे तो क्या क्या न कर दे

सियासत के अगर बस में हो 'गौहर'
मोहब्बत पर भी वो जुर्माना कर दे