EN اردو
मुझे अँधेरे में बे-शक बिठा दिया होता | शाही शायरी
mujhe andhere mein be-shak biTha diya hota

ग़ज़ल

मुझे अँधेरे में बे-शक बिठा दिया होता

गुलज़ार

;

मुझे अँधेरे में बे-शक बिठा दिया होता
मगर चराग़ की सूरत जला दिया होता

न रौशनी कोई आती मिरे तआक़ुब में
जो अपने-आप को मैं ने बुझा दिया होता

ये दर्द जिस्म के या-रब बहुत शदीद लगे
मुझे सलीब पे दो पल सुला दिया होता

ये शुक्र है कि मिरे पास तेरा ग़म तो रहा
वगर्ना ज़िंदगी ने तो रुला दिया होता