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मुझ से मत पूछ मिरा हाल-ए-दरूँ रहने दे | शाही शायरी
mujhse mat puchh mera haal-e-darun rahne de

ग़ज़ल

मुझ से मत पूछ मिरा हाल-ए-दरूँ रहने दे

अख़लाक़ बन्दवी

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मुझ से मत पूछ मिरा हाल-ए-दरूँ रहने दे
सुन के टपकेगा तिरी आँखों से ख़ूँ रहने दे

फ़स्ल-ए-गुल दश्त-ए-ख़िरद में है अगरचे मौजूद
मुझ को पा-बस्ता-ए-ज़ंजीर-ए-जुनूँ रहने दे

तू करम मुझ पे करेगा तो जताएगा ज़रूर
हाल जो मेरा ज़ुबूँ है तो ज़ुबूँ रहने दे

सादगी सी कोई ज़ीनत नहीं होती जानाँ
अपनी इन शोख़ अदाओं का फ़ुसूँ रहने दे

छेड़ कर फिर वही माज़ी के पुराने क़िस्से
मुझ से मत छीन मिरे दिल का सुकूँ रहने दे

ऐ ज़माना मैं तिरे साथ बदलने से रहा
अब मैं अच्छा कि बुरा जैसा भी हूँ रहने दे