मुझ से बनता हुआ तू तुझ को बनाता हुआ मैं
गीत होता हुआ तू गीत सुनाता हुआ मैं
एक कूज़े के तसव्वुर से जुड़े हम दोनों
नक़्श देता हुआ तू चाक घुमाता हुआ मैं
तुम बनाओ किसी तस्वीर में कोई रस्ता
मैं बनाता हूँ कहीं दूर से आता हुआ मैं
एक तस्वीर की तकमील के हम दो पहलू
रंग भरता हुआ तू रंग बनाता हुआ मैं
मुझ को ले जाए कहीं दूर बहाती हुई तू
तुझ को ले जाऊँ कहीं दूर उड़ाता हुआ मैं
इक इबारत है जो तहरीर नहीं हो पाई
मुझ को लिखता हुआ तू तुझ को मिटाता हुआ मैं
मेरे सीने में कहीं ख़ुद को छुपाता हुआ तू
तेरे सीने से तिरा दर्द चुराता हुआ मैं
काँच का हो के मिरे आगे बिखरता हुआ तू
किर्चियों को तिरी पलकों से उठाता हुआ मैं
ग़ज़ल
मुझ से बनता हुआ तू तुझ को बनाता हुआ मैं
अम्मार इक़बाल