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मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया | शाही शायरी
mujhko shikast-e-dil ka maza yaad aa gaya

ग़ज़ल

मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया

ख़ुमार बाराबंकवी

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मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया
तुम क्यूँ उदास हो गए क्या याद आ गया

कहने को ज़िंदगी थी बहुत मुख़्तसर मगर
कुछ यूँ बसर हुई कि ख़ुदा याद आ गया

वाइ'ज़ सलाम ले कि चला मय-कदे को मैं
फ़िरदौस-ए-गुमशुदा का पता याद आ गया

बरसे बग़ैर ही जो घटा घिर के खुल गई
इक बेवफ़ा का अहद-ए-वफ़ा याद आ गया

माँगेंगे अब दुआ कि उसे भूल जाएँ हम
लेकिन जो वो ब-वक़्त-ए-दुआ याद आ गया

हैरत है तुम को देख के मस्जिद में ऐ 'ख़ुमार'
क्या बात हो गई जो ख़ुदा याद आ गया