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मुझ को मंज़र के सिले में वो सदा भेजता है | शाही शायरी
mujhko manzar ke sile mein wo sada bhejta hai

ग़ज़ल

मुझ को मंज़र के सिले में वो सदा भेजता है

आफ़ताब अहमद शाह

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मुझ को मंज़र के सिले में वो सदा भेजता है
ख़ूब वो क़र्ज़ मिरा कर के अदा भेजता है

सरपरस्ती भी वो करता है ज़बरदस्ती से
दर्द करता है अता और दवा भेजता है

मेरे दुश्मन की है तलवार मिरी गर्दन पर
और तू है कि मुझे हर्फ़-ए-दुआ भेजता है

साँप जब झूट के दुनिया में बहुत हो जाएँ
दस्त-ए-मूसा में ख़ुदा सच का असा भेजता है

'आफ़्ताब' उस ने परखना हो किसी को तो अगर
वो ग़नी करता है और दर पे गदा भेजता है