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मुझ को कभी भी उन से शिकायत हुई नहीं | शाही शायरी
mujhko kabhi bhi un se shikayat hui nahin

ग़ज़ल

मुझ को कभी भी उन से शिकायत हुई नहीं

कविता किरन

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मुझ को कभी भी उन से शिकायत हुई नहीं
शायद इसी लिए तो मोहब्बत हुई नहीं

ग़ैरों से मेहरबानी की उम्मीद क्या करें
हम पर तो आप की भी इनायत हुई नहीं

वो लोग कूचे कूचे भटकने लगे हैं आज
जिन को ख़ुद अपने घर से भी चाहत हुई नहीं

हम ही तो थे जो वक़्त पे ही काम आ गए
अच्छा हुआ कि हम से अदावत हुई नहीं

मैं ने कभी किसी का दुखाया नहीं है दिल
मुझ को कभी किसी से नदामत हुई नहीं

तूफ़ान-ए-बाद-ओ-बाराँ में सब बह गया 'किरन'
बरसात अब की बाइस-ए-रहमत हुई नहीं