मुझ को भी हक़ है ज़िंदगानी का
मैं भी किरदार हूँ कहानी का
जो मुझे आज फिर नज़र आया
ख़्वाब है मेरी नौजवानी का
हम को दरपेश है ज़माने से
मसअला बख़्त की गिरानी का
क्यूँ निकलता नज़र नहीं आता
कुछ नतीजे भी ख़ुश-गुमानी का
कल जो सैलाब आ गया तू 'अज़ीम'
हम ने जाना मिज़ाज पानी का
ग़ज़ल
मुझ को भी हक़ है ज़िंदगानी का
ताहिर अज़ीम