EN اردو
मुझ को आशिक़ कह के उस के रू-ब-रू मत कीजियो | शाही शायरी
mujhko aashiq kah ke uske ru-ba-ru mat kijiyo

ग़ज़ल

मुझ को आशिक़ कह के उस के रू-ब-रू मत कीजियो

मीर हसन

;

मुझ को आशिक़ कह के उस के रू-ब-रू मत कीजियो
दोस्ताँ गर दोस्त हो तो ये कभू मत कीजियो

जिस अदा का कुश्ता हूँ मैं वो रहे मेरे ही साथ
उस अदा को मुब्तज़िल ऐ ख़ूब-रू मत कीजियो

वक़्त-ए-रुख़्सत दिल ने इतना ही कहा रो कर कि बस
अब फिर आने की मिरे तू आरज़ू मत कीजियो

मैं तो यूँही तुम से दीवाना सा बकता हूँ कहीं
उस के आगे दोस्ताँ ये गुफ़्तुगू मत कीजियो

ज़ुल्फ़ के कूचे से हो गुलशन में गुज़रे है सबा
आज वाँ जा कर गुलों को कोई बू मत कीजियो

कल के झगड़े में भला है किस के यारो हक़ ब-तर्फ
वाजिबी जो हो सो कहियो मेरी रू मत कीजियो

वाँ 'हसन' हरगिज़ नहीं है ढील फिर जाने में कुछ
आश्नाई पर भरोसा उस की तू मत कीजियो