मुहीत मिस्ल-ए-आसमाँ ज़मीन-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न पे हूँ
सुकूत का सबब है ये मक़ाम-ए-ला-सुख़न पे हूँ
फ़ज़ा-ए-ला-सबात में सरा-ए-बे-जिहात में
मुसाफ़िराना ख़ंदा-रेज़ वक़्त की थकन पे हूँ
मिरे नसीब की सहर ग़ुरूब हो गई कहाँ
नज़र जमाए देर से तिरी किरन किरन पे हूँ
सजाऊँ वो चमन जिन्हें ख़िज़ाँ कभी न छू सके
तिरी तरह जो हुक्मराँ शगुफ़्त हर चमन पे हूँ
अज़ीज़-तर है तेशा-ए-हुनर ग़ुबार-ए-दर्द से
तरीक़-ए-क़ैस पर नहीं तरीक़-ए-कोहकन पे हूँ
हुजूम-ए-सद-ख़याल से नजात मिल सके अगर
तो हासिदाना मो'तरिज़ किसी की अंजुमन पे हूँ
विसाल ही विसाल है फ़िराक़ अब मुहाल है
मैं तेरे हर लिबास की तरह तिरे बदन पे हूँ
किसी के शजरा-ए-सुख़न से निसबत-ए-सुख़न नहीं
मैं आप अपना मुद्दई' सियादत-ए-सुख़न पे हूँ

ग़ज़ल
मुहीत मिस्ल-ए-आसमाँ ज़मीन-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न पे हूँ
सहबा अख़्तर