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मुफ़्त में तोड़ के रख दी मिरी तौबा तू ने | शाही शायरी
muft mein toD ke rakh di meri tauba tu ne

ग़ज़ल

मुफ़्त में तोड़ के रख दी मिरी तौबा तू ने

जलील मानिकपूरी

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मुफ़्त में तोड़ के रख दी मिरी तौबा तू ने
काम पत्थर का किया शीशा-ए-सहबा तू ने

मैं ने की जामा-दरी और उन्हें शिकवा है
कर दिया चाक मिरे हुस्न का पर्दा तू ने

किस क़दर होश-रुबा है निगह-ए-मस्त तिरी
उस को देखा न सँभलते जिसे देखा तू ने

तू निगाहों में तसव्वुर में जिगर में दिल में
फ़ाएदा क्या जो किया आँख से पर्दा तू ने

हम न कहते थे नहीं ताक़त-ए-दीदार 'जलील'
क्या हुआ जल्वा-गह-ए-नाज़ में देखा तू ने