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मुद्दत से जो बंद पड़ा था आज वो कमरा खोल दिया | शाही शायरी
muddat se jo band paDa tha aaj wo kamra khol diya

ग़ज़ल

मुद्दत से जो बंद पड़ा था आज वो कमरा खोल दिया

मोहसिन आफ़ताब केलापुरी

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मुद्दत से जो बंद पड़ा था आज वो कमरा खोल दिया
मैं ने तेरे सामने दिल का कच्चा-चिट्ठा खोल दिया

मुझ से लड़ने वाले सारे मैदाँ छोड़ के भाग गए
ले कर इक तलवार जो मैं ने अपना सीना खोल दिया

फूल समझ कर तितली भँवरे उस पे आ कर बैठ गए
बाग़ में जा कर जूँ ही उस ने अपना चेहरा खोल दिया

सारे कामों को निप्टा कर आधी रात में सोई थी
भोर भए फिर उठ कर अम्मा ने दरवाज़ा खोल दिया

मुझ को देख के मेरा जुमला जूँ ही उस को याद आया
उस ने जो बाँधा था वो बालों का जूड़ा खोल दिया