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मुब्तला-ए-इ'ताब हैं हम लोग | शाही शायरी
mubtala-e-itab hain hum log

ग़ज़ल

मुब्तला-ए-इ'ताब हैं हम लोग

बशीरुद्दीन राज़

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मुब्तला-ए-इ'ताब हैं हम लोग
इक असीर-ए-अज़ाब हैं हम लोग

अपने दिल को इ'ताब हैं हम लोग
ख़ुद सरासर अज़ाब हैं हम लोग

अपनी बर्बादी अपने हाथों की
कैसे ख़ाना-ख़राब हैं हम लोग

अपना कोई भी तो जवाब नहीं
ख़ुद ही अपने जवाब हैं हम लोग

काश नाकामियाँ हों पै-दर-पै
समझो कि कामयाब हैं हम लोग

कह रही है जिन्हें बुरा दुनिया
वो ही ख़ाना-ख़राब हैं हम लोग

अपनी मंज़िल से हम पलट आए
ऐसे गुमराह जनाब हैं हम लोग

आज दुनिया के सामने ऐ 'राज़'
दम-ब-ख़ुद ला-जवाब हैं हम लोग