मुब्तला-ए-इ'ताब हैं हम लोग
इक असीर-ए-अज़ाब हैं हम लोग
अपने दिल को इ'ताब हैं हम लोग
ख़ुद सरासर अज़ाब हैं हम लोग
अपनी बर्बादी अपने हाथों की
कैसे ख़ाना-ख़राब हैं हम लोग
अपना कोई भी तो जवाब नहीं
ख़ुद ही अपने जवाब हैं हम लोग
काश नाकामियाँ हों पै-दर-पै
समझो कि कामयाब हैं हम लोग
कह रही है जिन्हें बुरा दुनिया
वो ही ख़ाना-ख़राब हैं हम लोग
अपनी मंज़िल से हम पलट आए
ऐसे गुमराह जनाब हैं हम लोग
आज दुनिया के सामने ऐ 'राज़'
दम-ब-ख़ुद ला-जवाब हैं हम लोग
ग़ज़ल
मुब्तला-ए-इ'ताब हैं हम लोग
बशीरुद्दीन राज़