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मुबारक हो ये तर्ज़-ए-बे-रुख़ी ये हौसला तुझ को | शाही शायरी
mubarak ho ye tarz-e-be-ruKHi ye hausla tujhko

ग़ज़ल

मुबारक हो ये तर्ज़-ए-बे-रुख़ी ये हौसला तुझ को

इक़बाल अशहर कुरेशी

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मुबारक हो ये तर्ज़-ए-बे-रुख़ी ये हौसला तुझ को
मुझे तू भूल जाए इतनी ख़ुशियाँ दे ख़ुदा तुझ को

हज़ारों अक्स लहराते हैं सत्ह-ए-आब-दीदा पर
किसे नाबूद कर देना है तूफ़ान-ए-बला तुझ को

कहीं ख़ुद्दारियाँ तन्हाइयों से झेंप जाती हैं
मिरे कुछ शे'र पढ़ लेना मज़ा आ जाएगा तुझ को

वक़ार-ए-शख़्सियत में फ़र्क़ तो पड़ता नहीं लेकिन
असर-अंदाज़ होता है हमारा देखना तुझ को

ये क्या अंदाज़ है 'अशहर' शरीफ़ों से तख़ातुब का
शरफ़ बख़्शा न जाएगा किसी तक़रीब का तुझ को