मुबारक हो ये तर्ज़-ए-बे-रुख़ी ये हौसला तुझ को
मुझे तू भूल जाए इतनी ख़ुशियाँ दे ख़ुदा तुझ को
हज़ारों अक्स लहराते हैं सत्ह-ए-आब-दीदा पर
किसे नाबूद कर देना है तूफ़ान-ए-बला तुझ को
कहीं ख़ुद्दारियाँ तन्हाइयों से झेंप जाती हैं
मिरे कुछ शे'र पढ़ लेना मज़ा आ जाएगा तुझ को
वक़ार-ए-शख़्सियत में फ़र्क़ तो पड़ता नहीं लेकिन
असर-अंदाज़ होता है हमारा देखना तुझ को
ये क्या अंदाज़ है 'अशहर' शरीफ़ों से तख़ातुब का
शरफ़ बख़्शा न जाएगा किसी तक़रीब का तुझ को
ग़ज़ल
मुबारक हो ये तर्ज़-ए-बे-रुख़ी ये हौसला तुझ को
इक़बाल अशहर कुरेशी