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मोहब्बत ये बता क्या सिलसिला है | शाही शायरी
mohabbat ye bata kya silsila hai

ग़ज़ल

मोहब्बत ये बता क्या सिलसिला है

रहमान ख़ावर

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मोहब्बत ये बता क्या सिलसिला है
ये मंज़िल है कि मेरा रास्ता है

अब उस का नाम दिल से क्या मिटाना
जो हम ने लिख दिया है लिख दिया है

दर-ए-दिल पर सदाएँ देने वाले
चला भी आ कि दरवाज़ा खुला है

मैं अपने आप में गुम हो गया हूँ
तिरी आवाज़ का जादू भी क्या है

ये कहती है तिरे होंटों की जुम्बिश
कि इन से और कोई बोलता है

ज़मीं है या कोई महताब 'ख़ावर'
सितारा है कि मिट्टी का दिया है