मोहब्बत सुल्ह भी पैकार भी है 
ये शाख़-ए-गुल भी है तलवार भी है 
तबीअत इस तरफ़ ख़ुद्दार भी है 
उधर नाज़ुक मिज़ाज-ए-यार भी है 
अदा-ए-इश्क़ अदा-ए-यार भी है 
बहुत सादा बहुत पुरकार भी है 
ये फ़ित्ने जिन से इक दुनिया है नालाँ 
इन्हीं से गर्मी-ए-बाज़ार भी है 
जुनूँ के दम से है नज़्म-ए-दो-आलम 
जुनूँ बरहम-ज़न-ए-अफ़्कार भी है 
नफ़स पर है मदार-ए-ज़िंदगानी 
नफ़स चलती हुई तलवार भी है 
इसी इंसान में सब कुछ है पिन्हाँ 
मगर ये मअरिफ़त दुश्वार भी है 
वो बू-ए-गुल कि है जान-ए-चमन भी 
क़यामत है चमन-बे-ज़ार भी है 
यही दुनिया है निस्बत आँसुओं की 
यही दुनिया तबस्सुम-ज़ार भी है 
जहाँ वो हैं वहीं मेरा तसव्वुर 
जहाँ मैं हूँ ख़याल-ए-यार भी है 
ख़बर-दार ऐ सुबुक-सारान-ए-साहिल 
ये साहिल ही कभी मंजधार भी है 
ग़नीमत है कि इस दौर-ए-हवस में 
तिरा मिलना बहुत दुश्वार भी है 
जो कोई सुन सके तो निकहत-ए-गुल 
शिकस्त-ए-रंग की झंकार भी है 
उन आँखों की ज़हे मोजज़-बयानी 
बहम इंकार भी इक़रार भी है
 
        ग़ज़ल
मोहब्बत सुल्ह भी पैकार भी है
जिगर मुरादाबादी

