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मोहब्बत रंग दे जाती है जब दिल दिल से मिलता है | शाही शायरी
mohabbat rang de jati hai jab dil dil se milta hai

ग़ज़ल

मोहब्बत रंग दे जाती है जब दिल दिल से मिलता है

जलील मानिकपूरी

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मोहब्बत रंग दे जाती है जब दिल दिल से मिलता है
मगर मुश्किल तो ये है दिल बड़ी मुश्किल से मिलता है

कशिश से कब है ख़ाली तिश्ना-कामी तिश्ना-कामों की
कि बढ़ कर मौजा-ए-दरिया लब-ए-साहिल से मिलता है

लुटाते हैं वो दौलत हुस्न की बावर नहीं आता
हमें तो एक बोसा भी बड़ी मुश्किल से मिलता है

गले मिल कर वो रुख़्सत हो रहे हैं हाए क्या कहने
ये हालत है कि बिस्मिल जिस तरह बिस्मिल से मिलता है

शहादत की ख़ुशी ऐसी है मुश्ताक़-ए-शहादत को
कभी ख़ंजर से मिलता है कभी क़ातिल से मिलता है

वो मुझ को देख कर कुछ अपने दिल में झेंप जाते हैं
कोई परवाना जब शम-ए-सर-ए-महफ़िल से मिलता है

ख़ुदा जाने ग़ुबार-ए-राह है या क़ैस है लैला
कोई आग़ोश खोले पर्दा-ए-महमिल से मिलता है

'जलील' उस की तलब से बाज़ रहना सख़्त ग़फ़लत है
ग़नीमत जानिए उस को कि वो मुश्किल से मिलता है