मोहब्बत मिरी रंग लाने लगी है
कि उन की नज़र मुस्कुराने लगी है
ये छेड़ा है किस ने रबाब-ए-मोहब्बत
कि हर साँस कुछ गुनगुनाने लगी है
वही ले गए हैं सकूँ ज़िंदगी का
जिन्हें हर तमन्ना बुलाने लगी है
शब-ए-ग़म मरी बे-क़रारी से थक कर
सितारों को भी नींद आने लगी है
उन्हें पा के महसूस करता हूँ 'इरफ़ाँ'
कि दुनिया मुझे आज़माने लगी है
ग़ज़ल
मोहब्बत मिरी रंग लाने लगी है
मुहीउद्दीन इरफ़ान