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मोहब्बत में ज़ियाँ-कारी मुराद-ए-दिल न बन जाए | शाही शायरी
mohabbat mein ziyan-kari murad-e-dil na ban jae

ग़ज़ल

मोहब्बत में ज़ियाँ-कारी मुराद-ए-दिल न बन जाए

ताजवर नजीबाबादी

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मोहब्बत में ज़ियाँ-कारी मुराद-ए-दिल न बन जाए
ये ला-हासिल ही उम्र-ए-इश्क़ का हासिल न बन जाए

मुझी पर पड़ रही है सारी महफ़िल में नज़र उन की
ये दिलदारी हिसाब-ए-दोस्ताँ दर-दिल न बन जाए

करूँगा उम्र भर तय राह-ए-बे-मंज़िल मोहब्बत की
अगर वो आस्ताँ इस राह की मंज़िल न बन जाए

तिरे अनवार से है नब्ज़-ए-हस्ती में तड़प पैदा
कहीं सारा निज़ाम-ए-काएनात इक दिल न बन जाए

कहीं रुस्वा न हो अब शान-ए-इस्तिग़ना मोहब्बत की
मिरी हालत तुम्हारे रहम के क़ाबिल न बन जाए