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मोहब्बत में जीना नई बात है | शाही शायरी
mohabbat mein jina nai baat hai

ग़ज़ल

मोहब्बत में जीना नई बात है

साइल देहलवी

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मोहब्बत में जीना नई बात है
न मरना भी मर कर करामात है

मैं रुस्वा-ए-उल्फ़त वो मारूफ़-ए-हुस्न
बहम शोहरतों में मुसावात है

न शाहिद न मय है न बज़्म-ए-तरब
ये ख़मियाज़ा-ए-तर्क-ए-आदात है

शब ओ रोज़ फ़ुर्क़त हमारा हर एक
अजल का है दिन मौत की रात है

उड़ी है मय-ए-मुफ़्त 'साइल' मुदाम
कि साक़ी से गहरी मुलाक़ात है