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मोहब्बत के हवाले ढूँढता है | शाही शायरी
mohabbat ke hawale DhunDhta hai

ग़ज़ल

मोहब्बत के हवाले ढूँढता है

फ़ैसल फेहमी

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मोहब्बत के हवाले ढूँढता है
अँधेरों में उजाले ढूँढता है

ख़ुदा जाने वो कैसा बावला है
हरम में मय प्याले ढूँढता है

मुसाफ़िर दो-क़दम चल कर परेशान
कि अपने पा के छाले ढूँढता है

समुंदर में तलाशें तो बहुत हैं
ख़ज़ाने वो निराले ढूँढता है

रहे ता-बूद क़ाएम राज़दारी
ख़ुदा कुछ ऐसे ताले ढूँढता है