EN اردو
मोहब्बत का सिला-कार-ए-मोहब्बत से नहीं मिलता | शाही शायरी
mohabbat ka sila-kar-e-mohabbat se nahin milta

ग़ज़ल

मोहब्बत का सिला-कार-ए-मोहब्बत से नहीं मिलता

फ़रहत एहसास

;

मोहब्बत का सिला-कार-ए-मोहब्बत से नहीं मिलता
जो अफ़्साने से मिलता है हक़ीक़त से नहीं मिलता

मैं उस को उस के बाहर देखता हूँ सख़्त मुश्किल में
कोई भी अक्स उस का अस्ल सूरत से नहीं मिलता

मुलाक़ात उस से अब तो बाला बाला भी नहीं मुमकिन
छतों का सिलसिला एक उस की ही छत से नहीं मिलता

कहाँ से लाएँ इश्क़ इतना कि उस तक बार पाएँ हम
वो ख़ुद बैरून-ए-सहरा अहल-ए-वहशत से नहीं मिलता

कि अब दर-पेश रहते हैं कई अपने भी काम उस को
वो पहले की तरह अब अपने 'फ़रहत' से नहीं मिलता