मोहब्बत का जहाँ है और मैं हूँ
मिरा दारुल-अमाँ है और मैं हूँ
हयात-ए-ग़म निशाँ है और मैं हूँ
मुसलसल इम्तिहाँ है और मैं हूँ
निगाह-ए-शौक़ है और उन के जल्वे
शिकस्त-ए-ना-गहाँ है और मैं हूँ
उसी का नाम हो शायद मोहब्बत
कोई बार-ए-गिराँ है और मैं हूँ
मोहब्बत बे-सहारा तो नहीं है
मिरा दर्द-ए-निहाँ है और मैं हूँ
मोहब्बत के फ़साने अल्लाह अल्लाह
ज़माने की ज़बाँ है और मैं हूँ
'क़मर' तक़लीद का क़ाइल नहीं मैं
मिरा तर्ज़-ए-बयाँ है और मैं हूँ
ग़ज़ल
मोहब्बत का जहाँ है और मैं हूँ
क़मर मुरादाबादी