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मोहब्बत एक जैसी है वफ़ाएँ एक जैसी हैं | शाही शायरी
mohabbat ek jaisi hai wafaen ek jaisi hain

ग़ज़ल

मोहब्बत एक जैसी है वफ़ाएँ एक जैसी हैं

ख़्वाज़ा रज़ी हैदर

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मोहब्बत एक जैसी है वफ़ाएँ एक जैसी हैं
यहाँ मौसम बदलने पर हवाएँ एक जैसी हैं

अजब शहर-ए-सुख़न आबाद है मेरी समाअ'त में
अजब शहर-ए-ख़मोशाँ है सदाएँ एक जैसी हैं

तिरी आँखों में आवाज़ें मिरे होंटों पे सन्नाटा
सफ़र की दास्तानें क्या सुनाएँ एक जैसी हैं

सुना है उस तरफ़ भी शाम को लहजा महकता है
ख़फ़ा आपस में हैं लेकिन दुआएँ एक जैसी हैं

'रज़ी' दोनों को अक्सर ख़ौफ़-ए-तन्हाई सताता है
'रज़ी' दोनों की क़िस्मत में सज़ाएँ एक जैसी हैं