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माडर्न हीरें तो ज़र-दारों के हाँ रह जाएँगी | शाही शायरी
modern hiren to zar-daron ke han rah jaengi

ग़ज़ल

माडर्न हीरें तो ज़र-दारों के हाँ रह जाएँगी

सरफ़राज़ शाहिद

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माडर्न हीरें तो ज़र-दारों के हाँ रह जाएँगी
और राँझाें के लबों पर मुरलियाँ रह जाएँगी

हो सके तो तुम बचा लो अब भी देसी नस्ल को
वर्ना पीछे सिर्फ़ ''शेवर'' मुर्ग़ियाँ रह जाएँगी

''सनफ़्लॉवर'' हो गया है इब्न-ए-आदम की ग़िज़ा
अब चमन-ज़ारों में गोया सब्ज़ियाँ रह जाएँगी

छोटी क़ौमों पर अगर ''वीटो'' का लठ चलता रहा
सिर्फ़ ''यू.एन.ओ'' में ग़ुंडा-गर्दीयाँ रह जाएँगी

नेक-सीरत शौहरों को देख कर हूरों के बीच
ख़ुल्द के अंदर तड़प कर बीवियाँ रह जाएँगी

ज़ुल्मतें होंगी तवानाई के इस बोहरान में
सिर्फ़ आँखों में चमकती बिजलियाँ रह जाएँगी

मुर्ग़ पर फ़ौरन झपट दावत में वर्ना ब'अद में
शोरबा और गर्दनों की हड्डियाँ रह जाएँगी

घर के गुल-दानों में 'शाहिद' फूल होंगे काग़ज़ी
और पर्दों पर ''प्रिेंटेड'' तितलियाँ रह जाएँगी