मिज़्गान-ए-तर हूँ या रग-ए-ताक-ए-बुरीदा हूँ
जो कुछ कि हूँ सो हूँ ग़रज़ आफ़त-रसीदा हूँ
खींचे है दूर आप को मेरी फ़रोतनी
उफ़्तादा हूँ प साया-ए-क़द्द-ए-कशीदा हूँ
हर शाम मिस्ल-ए-शाम हूँ मैं तीरा-रोज़गार
हर सुब्ह मिस्ल-ए-सुब्ह गरेबाँ-दरीदा हूँ
करती है बू-ए-गुल तू मिरे साथ इख़्तिलात
पर आह मैं तो मौज-ए-नसीम-ए-दज़ीदा हूँ
तू चाहती है तो तपिश-ए-दिल कि बा'द-ए-मर्ग
कुंज-ए-मज़ार में भी न मैं आर्मीदा हूँ
ऐ 'दर्द' जा चुका है मिरा काम ज़ब्त से
मैं ग़म-ज़दा तो क़तरा-ए-अश्क-ए-चकीदा हूँ
ग़ज़ल
मिज़्गान-ए-तर हूँ या रग-ए-ताक-ए-बुरीदा हूँ
ख़्वाजा मीर 'दर्द'

