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मिज़ाज-ए-गर्दिश-ए-दौराँ वही समझते हैं | शाही शायरी
mizaj-e-gardish-e-dauran wahi samajhte hain

ग़ज़ल

मिज़ाज-ए-गर्दिश-ए-दौराँ वही समझते हैं

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

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मिज़ाज-ए-गर्दिश-ए-दौराँ वही समझते हैं
जो रस्म-ओ-राह-ए-गम-ए-आशिक़ी समझते हैं

वो कौन लोग थे रास आई जिन को ग़ुर्बत भी
हमें तो अहल-ए-वतन अजनबी समझते हैं

शिकस्त-ए-दिल का ये इक लाज़मी नतीजा है
हुज़ूर आप जिसे सादगी समझते हैं

बड़ी लतीफ़ है ये लज़्ज़त-ए-तलब लेकिन
कुछ इस को तेरे गुनहगार ही समझते हैं

छुपाओ हम से न 'शाहीन' राज़-ए-दिल अपना
कि हम ज़बाँ निगह-ए-शौक़ की समझते हैं