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मिज़ाज-ए-दहर में उन का इशारा पाए जा | शाही शायरी
mizaj-e-dahr mein un ka ishaara pae ja

ग़ज़ल

मिज़ाज-ए-दहर में उन का इशारा पाए जा

फ़ानी बदायुनी

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मिज़ाज-ए-दहर में उन का इशारा पाए जा
जो हो सके तो बहर-हाल मुस्कुराए जा

बहार-ए-सद-चमनिस्तान-ए-आरज़ू बन कर
मिरे ख़याल की रंगीनियों में आए जा

ख़िरद-नवाज़ निगाहों की आड़ में रह कर
फ़ज़ा-ए-आलम-ए-दीवानगी पे छाए जा

पिलाए जा कि अभी होश-ए-बे-ख़ुदी है मुझे
पिलाए जा मुझे साक़ी अभी पिलाए जा

दिल ओ जिगर पे गुज़र जाएगी जो गुज़रेगी
तिरी नज़र से जो फ़ित्ने उठें उठाए जा

ज़रा ठहर कि अब अंजाम-ए-सोज़-ए-गम है क़रीब
चराग़-ए-ज़ीस्त भड़कने को है बुझाए जा

सुकूत-ए-मय्यत-ए-'फ़ानी' है इक फ़साना-ए-शौक़
लब-ए-ख़मोश से हर मुद्दआ को पाए जा