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मिट गया ग़म तिरे तकल्लुम से | शाही शायरी
miT gaya gham tere takallum se

ग़ज़ल

मिट गया ग़म तिरे तकल्लुम से

एजाज़ रहमानी

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मिट गया ग़म तिरे तकल्लुम से
लब हुए आश्ना तबस्सुम से

किस के नक़्श-ए-क़दम हैं राहों में
जगमगाते हैं माह-ओ-अंजुम से

है ज़माना बड़ा ज़माना-शनास
कभी मुझ से गिला कभी तुम से

नाख़ुदा भी मिला तो ऐसा मिला
आश्ना जो नहीं तलातुम से

उस ने आ कर मिज़ाज पूछ लिया
हम तो बैठे हुए थे गुम-सुम से

नाख़ुदा ने डुबो दिया उन को
वो कि जो बच गए तलातुम से

ज़िंदगी हादसों की ज़द में है
कोई कैसे बचे तसादुम से

साया-ए-गुल में बैठने वालो
गुफ़्तुगू होगी दार पर तुम से

मैं ग़ज़ल का असीर हूँ 'एजाज़'
शे'र पढ़ता हूँ मैं तरन्नुम से