EN اردو
मिसरे के वस्त में खड़ा हूँ | शाही शायरी
misre ke wast mein khaDa hun

ग़ज़ल

मिसरे के वस्त में खड़ा हूँ

शहनवाज़ ज़ैदी

;

मिसरे के वस्त में खड़ा हूँ
शायद मैं अंधा हो गया हूँ

सोए हुए बीज जाग जाएँ
खेतों में अश्क बो रहा हूँ

दहलीज़ के पास से किसी के
फेंके हुए ख़्वाब चुन रहा हूँ

बिस्तर में रात सो रही है
मैं तेरे हुज़ूर जागता हूँ

सारी मुर्दा मोहब्बतों को
हैरत से छू के देखता हूँ

टूटी हुई रक़म की तरह से
बेकार में ख़र्च हो गया हूँ

भूला हूँ समुंदरों पे चलना
गलियों में डूबने लगा हूँ

तलवार पर नक़्श खोद कर क्या
क़ातिल से दाद चाहता हूँ

बहरूप बदल लिया है तू ने
मैं भी तो तमाशा बन गया हूँ