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मिस्ल-ए-नमरूद हर इक शख़्स ख़ुदाई माँगे | शाही शायरी
misl-e-namrud har ek shaKHs KHudai mange

ग़ज़ल

मिस्ल-ए-नमरूद हर इक शख़्स ख़ुदाई माँगे

बशीर मुंज़िर

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मिस्ल-ए-नमरूद हर इक शख़्स ख़ुदाई माँगे
दिल वो पागल है कि ख़िल्क़त की भलाई माँगे

हम हैं मुजरिम तो अदालत में बुलाया होता
बोल सकते हैं अगर कोई सफ़ाई माँगे

कितनी सरकश है तमन्ना कि हुज़ूरी चाहे
कितना बेबाक है नाला कि रसाई माँगे

शौक़ चाहे कि अभी और बगूले उट्ठें
वुसअ'त-ए-दश्त मिरी आबला-पाई माँगे

कोई तमकीं कोई तस्कीं कोई तहसीं चाहे
एक 'मुंज़िर' है कि आशुफ़्ता-नवाई माँगे