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मिसाल-ए-चर्ख़ रहा 'आसमाँ' सर-गरदाँ | शाही शायरी
misal-e-charKH raha aasman sar-gardan

ग़ज़ल

मिसाल-ए-चर्ख़ रहा 'आसमाँ' सर-गरदाँ

मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम

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मिसाल-ए-चर्ख़ रहा 'आसमाँ' सर-गरदाँ
पर आज तक न खुला ये कि जुस्तुजू क्या है

यहाँ तो काम तमन्ना ही में तमाम हुआ
मगर उन्हों ने न पूछा कि आरज़ू क्या है

ये बहस कसरत ओ वहदत की हम से क्यूँ वाइज़
हमारी आँखों से तू देख चार-सू क्या है

कोई तो चाहिए रख़्ना उमीद-वारी को
बराए-चाक-ए-जिगर हाजत-ए-रफ़ू क्या है

मसल जहाँ में है 'मुश्ते नमूना अज़-ख़रवार''
जो हट-धरम नहीं तुम हो तो हट की ख़ू क्या है

गवाह हैं ये तिरी बहकी बहकी बातों के
ये जाम क्या है ये मय क्या है ये सुबू क्या है

तुम्हारे दाँत नहीं हीरे की हैं ये कनियाँ
तुम्हारे सामने मोती की आबरू क्या है