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मिसाल-ए-बर्ग किसी शाख़ से झड़े हुए हैं | शाही शायरी
misal-e-barg kisi shaKH se jhaDe hue hain

ग़ज़ल

मिसाल-ए-बर्ग किसी शाख़ से झड़े हुए हैं

अफ़ज़ल गौहर राव

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मिसाल-ए-बर्ग किसी शाख़ से झड़े हुए हैं
इसी लिए तो तिरे पाँव में पड़े हुए हैं

ज़मीं ने ऊँचा उठाया हुआ है वर्ना दोस्त
हवा में घास के तिनके कहाँ पड़े हुए हैं

किसी ने मेरी ज़मीं छान कर नहीं देखी
वगर्ना कितने सितारे यहाँ पड़े हुए हैं

यहाँ सरों पे यूँही बर्फ़ आ पड़ी वर्ना
बड़े भी उम्र से अपनी कहाँ बड़े हुए हैं

किसी के हुक्म से ऐसा जुमूद तारी है
ज़मीं रवाना हुई और हम खड़े हुए हैं