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मिरी ज़िंदगी की किताब में यही नक़्श हैं मह-ओ-साल के | शाही शायरी
meri zindagi ki kitab mein yahi naqsh hain mah-o-sal ke

ग़ज़ल

मिरी ज़िंदगी की किताब में यही नक़्श हैं मह-ओ-साल के

ज़िया फ़ारूक़ी

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मिरी ज़िंदगी की किताब में यही नक़्श हैं मह-ओ-साल के
वो शगुफ़्ता रंग उरूज के ये शिकस्ता रंग ज़वाल के

तिरे हुस्न से मिरे इश्क़ तक ये जो निस्बतों के हैं सिलसिले
ये शजर हैं एक ही बाग़ के ये समर हैं एक ही डाल के

मैं सुनाऊँ क्या कोई दास्ताँ कि सुबूत-ए-ग़म भी नहीं रहा
मिरे इश्क़ नामे को ले गया कोई ताक़-ए-जाँ से निकाल के

मिरे बाग़ में वो गुलाब था कि महक रहा था चमन चमन
वो जो गुम हुआ तो बिखर गए सभी रंग हुज़्न-ओ-मलाल के

कोई ख़्वाब है न ख़याल है कोई आरज़ू है न जुस्तुजू
ये कहाँ है ला के बिठा दिया मुझे क़ैद-ए-जाँ से निकाल के

मैं भटक रहा था जिहत जिहत तिरे नक़्श-ए-पा की तलाश में
मिरे साथ साथ चला किए कई अक्स ख़्वाब-ओ-ख़याल के

मुझे शाहराह-ए-हयात पर कई ऐसे घर भी मिले 'ज़िया'
जहाँ क़ुमक़ुमे न जले कभी न वो हिज्र के न विसाल के