मिरी ज़िंदगी की किताब का है वरक़ वरक़ यूँ सजा हुआ
सर-ए-इब्तिदा सर-ए-इंतिहा तिरा नाम दिल पे लिखा हुआ
ये चमक-दमक तो फ़रेब है मुझे देख गहरी निगाह से
है लिबास मेरा सजा हुआ मिरा दिल मगर है बुझा हुआ
मिरी आँख तेरी तलाश में यूँ भटकती रहती है रात-दिन
जैसे जंगलों में हिरन कोई हो शिकारियों में घिरा हुआ
तिरी दूरियाँ तिरी क़ुर्बतें तिरा लम्स तेरी रिफाक़तें
मुझे अब भी वज्ह-ए-सुकूँ तो है तू है दूर मुझ से तो क्या हुआ
ये गिले की बात तो है मगर मुझे उस से कोई गिला नहीं
जो उजड़ गया मिरा घर तो क्या है तुम्हारा घर तो बचा हवा
तिरे आँसुओं से लिखा हुआ मिरे आँसुओं से मिटा हुआ
मैं 'नसीम' ख़त को पढ़ूँ भी क्या कि हिसार-ए-आब ही आब है
तिरे आँसुओं से लिखा हुआ मिरे आँसुओं से मिटा हुआ
ग़ज़ल
मिरी ज़िंदगी की किताब का है वरक़ वरक़ यूँ सजा हुआ
मुमताज़ नसीम