मिरी वफ़ा का तिरा लुत्फ़ भी जवाब नहीं
मिरे शबाब की क़ीमत तिरा शबाब नहीं
ये माहताब नहीं है कि आफ़्ताब नहीं
सभी है हुस्न मगर इश्क़ का जवाब नहीं
मिरी निगाह में जल्वे हैं जल्वे ही जल्वे
यहाँ हिजाब नहीं है यहाँ नक़ाब नहीं
जुनूँ भी हद से सिवा शौक़ भी है हद से सिवा
ये बात क्या है कि मैं मौरिद-ए-इताब नहीं
यहाँ तो हुस्न का दिल भी है ग़म से सद पारा
मैं कामयाब नहीं वो भी कामयाब नहीं
यहाँ तो रात की बेदारियाँ मुसल्लम हैं
मगर वहाँ भी हसीं अँखड़ियों में ख़्वाब नहीं
न पूछिए मिरी दुनिया को मेरी दुनिया में
ख़ुद आफ़्ताब भी ज़र्रा है आफ़्ताब नहीं
सब ही हैं मय-कदा-ए-दहर में ख़िरद वाले
कोई ख़राब नहीं है कोई ख़राब नहीं
'मजाज़' किस को मैं समझाऊँ कोई क्या समझे
कि कामयाब-ए-मोहब्बत भी कामयाब नहीं
ग़ज़ल
मिरी वफ़ा का तिरा लुत्फ़ भी जवाब नहीं
असरार-उल-हक़ मजाज़