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मिरी शाएरी में न रक़्स-ए-जाम न मय की रंग-फ़िशानियाँ | शाही शायरी
meri shaeri mein na raqs-e-jam na mai ki rang-fishaniyan

ग़ज़ल

मिरी शाएरी में न रक़्स-ए-जाम न मय की रंग-फ़िशानियाँ

कलीम आजिज़

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मिरी शाएरी में न रक़्स-ए-जाम न मय की रंग-फ़िशानियाँ
वही दुख-भरों की हिकायतें वही दिल-जलों की कहानियाँ

ये जो आह-ओ-नाला-ओ-दर्द हैं किसी बेवफ़ा की निशानियाँ
यही मेरे दिन के रफ़ीक़ हैं यही मेरी रात की रानियाँ

ये मिरी ज़बाँ पे ग़ज़ल नहीं मैं सुना रहा हूँ कहानियाँ
कि किसी के अहद-ए-शबाब पर मिटीं कैसी कैसी जवानियाँ

कभी आँसुओं को सुखा गईं मिरे सोज़-ए-दिल की हरारतें
कभी दिल की नाव डुबो गईं मिरे आँसुओं की रवानियाँ

अभी उस को इस की ख़बर कहाँ कि क़दम कहाँ है नज़र कहाँ
अभी मस्लहत का गुज़र कहाँ कि नई नई हैं जवानियाँ

ये बयान-ए-हाल ये गुफ़्तुगू है मिरा निचोड़ा हुआ लहू
अभी सुन लो मुझ से कि फिर कभू न सुनोगे ऐसी कहानियाँ