मिरी रंगीं-कलामी का है वो गुल पैरहन बाइ'स
कि होवे बुलबुलों की ख़ुश-सफ़ीरी का चमन बाइ'स
कोई होता है संग-ए-सीना ख़ुसरव से रक़ीबों का
हुआ नाहक़ हलाक अपने का आपी कोहकन बाइ'स
जो होता है किसी से उन्स सब से वहशत आती है
मिरी सहरा-नशीनी का है मेरा मन-हरन बाइ'स
'हज़ीं' उन शो'ला-रुख़्सारों से जी को मत लगा हरगिज़
हुई आख़िर को परवाने के जलने की लगन बाइ'स
ग़ज़ल
मिरी रंगीं-कलामी का है वो गुल पैरहन बाइ'स
मीर मोहम्मद बाक़र हज़ीं