EN اردو
मिरी जुदाई में आँसू बहाए जाते हैं | शाही शायरी
meri judai mein aansu bahae jate hain

ग़ज़ल

मिरी जुदाई में आँसू बहाए जाते हैं

लक्ष्मी नारायण फ़ारिग़

;

मिरी जुदाई में आँसू बहाए जाते हैं
ये फ़ित्ना मेरी लहद पर जगाए जाते हैं

ज़िया-ए-हुस्न को दरगाह-ए-दिल तरसती है
चराग़ दैर-ओ-हरम में जलाए जाते हैं

नहीं सताते किसी को भी जो ज़माने में
वही ज़माने में अक्सर सताए जाते हैं

ज़िया-ए-हुस्न से होता है जिन का दिल मामूर
चराग़ गोर पर उन की जलाए जाते हैं

फ़सानों से नहीं बनतीं हक़ीक़तें लेकिन
हक़ीक़तों से फ़साने बनाए जाते हैं

कहीं ग़ुरूर तकब्बुर कहीं फ़ुतूर-ए-ख़ुदी
हमारी राह में रहज़न बिठाए जाते हैं

अदब की महफ़िल-ए-रंगीं में रात-दिन 'फ़ारिग़'
मिरे फ़साने ही अक्सर सुनाए जाते हैं