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मिरी हयात को बे-रब्त बाब रहने दे | शाही शायरी
meri hayat ko be-rabt bab rahne de

ग़ज़ल

मिरी हयात को बे-रब्त बाब रहने दे

एहतिशाम अख्तर

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मिरी हयात को बे-रब्त बाब रहने दे
वरक़ वरक़ यूँ ही ग़म की किताब रहने दे

मैं राहगीरों की हिम्मत बँधाने वाला हूँ
मिरे वजूद में शामिल शराब रहने दे

तबाह ख़ुद को मैं कर लूँ बदन को छू के तिरे
तू अपने लम्स का मुझ पर अज़ाब रहने दे

ज़रा ठहर कि अभी ख़ून में समाई नहीं
मिरे क़रीब बदन की शराब रहने दे

भुला चुका हूँ मैं सब कुछ दिला न याद मुझे
जो खो चुका हूँ अब उस का हिसाब रहने दे

जला लिया है बदन अपनी आग में मैं ने
बुझा न इस को अभी ये अज़ाब रहने दे