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मिरी हस्ती सज़ा होने से पहले | शाही शायरी
meri hasti saza hone se pahle

ग़ज़ल

मिरी हस्ती सज़ा होने से पहले

इसहाक़ विरदग

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मिरी हस्ती सज़ा होने से पहले
मैं मर जाता बड़ा होने से पहले

हमारे साथ उठता बैठता था
वो इक बंदा ख़ुदा होने से पहले

वो क़िबला इस गली से जा चुका था
नमाज़-ए-दिल अदा होने से पहले

मोहब्बत इक मुसलसल हादिसा थी
हमारे बे-वफ़ा होने से पहले

मैं अपनी ज़ात से ना-आश्ना था
ख़ुदा से आश्ना होने से पहले

ख़िज़ाँ में फूल सा लगता था मुझ को
वो पत्थर आइना होने से पहले

बहुत मज़बूत सी दीवार था मैं
किसी का रास्ता होने से पहले