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मिरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोए | शाही शायरी
meri dastan-e-hasrat wo suna suna ke roe

ग़ज़ल

मिरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोए

सैफ़ुद्दीन सैफ़

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मिरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोए
मिरे आज़माने वाले मुझे आज़मा के रोए

कोई ऐसा अहल-ए-दिल हो कि फ़साना-ए-मोहब्बत
मैं उसे सुना के रोऊँ वो मुझे सुना के रोए

मिरी आरज़ू की दुनिया दिल-ए-ना-तवाँ की हसरत
जिसे खो के शादमाँ थे उसे आज पा के रोए

तिरी बेवफ़ाइयों पर तिरी कज-अदाइयों पर
कभी सर झुका के रोए कभी मुँह छुपा के रोए

जो सुनाई अंजुमन में शब-ए-ग़म की आप-बीती
कई रो के मुस्कुराए कई मुस्कुरा के रोए