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मिरी आँखों में दरिया झूलता है | शाही शायरी
meri aankhon mein dariya jhulta hai

ग़ज़ल

मिरी आँखों में दरिया झूलता है

किश्वर नाहीद

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मिरी आँखों में दरिया झूलता है
ये पानी अब किनारा ढूँडता है

ये पानी रेत की तह से गुज़र कर
तअल्लुक़ है तो रस्ता ढूँडता है

तअल्लुक़ को न समझो जावेदानी
ये आईना हवा से टूटता है

हमारी प्यास रुख़्सत चाहती है
प्याला हाथ से अब छूटता है