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मिरे वजूद से आती है इक सदा मुझ को | शाही शायरी
mere wajud se aati hai ek sada mujhko

ग़ज़ल

मिरे वजूद से आती है इक सदा मुझ को

मोहम्मद अली असर

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मिरे वजूद से आती है इक सदा मुझ को
कि मेरे जिस्म से कर दे कोई जुदा मुझ को

मिरी तलाश का हासिल फ़क़त तहय्युर है
मैं खो गया हूँ कहाँ ख़ुद नहीं पता मुझ को

मैं अपने जिस्म के अंदर सिमट के बैठा हूँ
बुला रहा है कहीं दूर से ख़ुदा मुझ को

मैं तुझ को देखूँ मगर गुफ़्तुगू न कर पाऊँ
ख़ुदा के वास्ते ऐसी न दे सज़ा मुझ को

वो लहजा अब भी तसव्वुर में गूँजता है 'असर'
वो चेहरा अब भी दिखाता है आईना मुझ को